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जिंदगी को हाँ कह दी / संतोष श्रीवास्तव

एक कली
भोर की मुस्कुराहट पहन
रात का शबनमी कम्बल उतार
पंखुड़ी पंखुड़ी अंगड़ाई ले
संवर उठी है
मेरे मुकद्दर की
उन डालियों पर
जहाँ ज़र्द पीले पत्तों का
कमजोर-सा सरमाया था
टूट पड़ने को आतुर
जैसे मेरी सांसें
जो अब बुरी तरह
खटकने लगी हैं
तुम्हारे सीने में
मेरे नाजुक बदन का
यह पहाड़-सा दर्द
जिसको देखते बूझते
तुम काँप जाते हो मुझसे
तो सुनो
मैंने मौत को अभी
इंकार कर दिया है
और ज़िन्दगी को हाँ कह दी है