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जिस्म और सपने / वेणु गोपाल
Kavita Kosh से
तुम्हीं बताओ--
कहीं ढूंढें जगह?
आड़ कहाँ मिलेगी?
घर मकबरा बन चुका है।
पत्थर की मुर्दा आंखों के पीछे
तानाशाही की नज़र चौकन्नी है
चौबीसों घंटे।
पार्कों में परेड हो रही है। नदी किनारों पर
चांदमारी। ताजमहल को
'एन्क्रोचमेंट हटाओ' अभियान के तहत
तोड़ दिए जाने का प्रस्ताव
विचाराधीन है।
तुम्हीं बताओ--
कहाँ है कोई जगह
हमारे सपनों के अलावा?
कहाँ है कोई आड़
हमारे जिस्मों के अलावा?
रचनाकाल : 2 दिसम्बर 1975