भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन-पथ के राही से / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बंधनों में, हार में रोना नहीं, रोना नहीं !

राह है यह ज़िन्दगी की एक पल रुकना न होगा,
देख सीमाहीन पथ को बीच में थकना न होगा,
ज्वार उठता हो उदधि में, मृत्यु-मुख में प्राण जाएँ,
गाज गिरती हो अवनि पर या दहलती हों दिशाएँ,
पर, हृदय-साहस कभी खोना नहीं, खोना नहीं !

हो अँधेरी रात चाहे, घोर गर्जन हो प्रलय का,
घेर ले झंझा भयानक, नृत्य हो चाहे अनय का,
मानकर चलना कि साथी हैं सभी झोंके भयंकर
ले चलेंगे पार फर-फर व्योम-पथ से जो उड़ा कर,
एक पल भी भय-ग्रसित होना नहीं, होना नहीं !
1949