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जीवन धारा / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर
Kavita Kosh से
जीवन धारा बड़ी अपारा
जिसने खींचा-तानी की
उसी को इसने दे मारा
जीते-जीते वर्षों हो गए
मरते कटते अर्शों हो गए
खूब मचाई तिगदम-तिगडी
किस्मत बन-बन के बिगड़ी
हो चला है जीवन झुरमुट
अब चल कहीं को उठ उठ उठ
बता की अब तक क्या-क्या जीता?
बता की अब तक क्या-क्या हारा?
जीवन धारा बड़ी अपारा....
पैसा जोड़ा चोरी हो गयी
थानेदार से मू-जोरी हो गयी
कहे को पैसा जोड़ रखा है
भ्रम का चादर ओढ़ रखा है
मत सोच फिरंगी ये तुम्हारा
मत सोच फिरंगी ये हमारा
जीवन धारा बड़ी अपारा....
ऐसे ही बस करते रहना
और समय से डरते रहना
मत देख शिखर को कैसा है वो
तेरे लालच जैसा है वो
क्या खोएगा क्या पाएगा
घुटकर यूँ ही मर जाएगा
और मिट जाएगा जीवन सारा
जीवन सारा जीवन सारा
जीवन धारा बड़ी अपारा