भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन में छेलै सखी, घोर काली रात हे / छोटेलाल दास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन में छेलै सखी, घोर काली रात हे।
सतगुरु आबि गेलै, होलै परभात हे॥टेक॥
शीतल सुगंध बहै, मंद-मंद वात हे।
कली-कली खिलि गेलै, झूमि गेलै पात हे॥1॥
रोग-सोग भागि गेलै, खोट-खोट बात हे।
आबि गेलै देखो सखी, खुशी के बरात हे॥2॥
दौड़ो दौड़ो दौड़ो सब, करो प्रणिपात हे।
चरण चढ़ाबो फूल, पाबो आशीर्वाद हे॥3॥
सतगुरु भाई-बंधु, सखा पितु मात हे।
गुरु-सम हित नहिं, जोड़ो गुरु नात हे॥4॥
‘लाल दास’ गुरु पाबो भक्ति दात हे।
सफल बनाबो सखी, मानव-सुगात हे॥5॥