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जीवन शूल-बिछौना है / आभा पूर्वे
Kavita Kosh से
जीवन शूल-बिछौना है
फिर फूलों का दोना है।
दीवारें सब गिरी हुई हैं
बचा हुआ एक कोना है।
दुख तो ओझा-गुनी हुआ है
सुख भी जादू-टोना है।
मुँह से सच-सच निकल गया तो
जीवन भर ही रोना है।
यह भी पता नहीं है मुझको
क्या पाना क्या खोना है।
दुःख को पीतल क्यूँ बोलूं मैं
वह तो असली सोना है।
कल की चिन्ता कौन करे अब
जो होना है होना है।