भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुगनू भी इंजोर करै / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुगनू भी इंजोर करै
की प्रकाश दै? भोर करै?

बादल-बिजली डर सेॅ थर-थर
जे रं डीजे शोर करै।

रुके कहाँ जेकरा चलना छै
रात अन्हरिया घोर करै।

कत्तेॅ दूर अभी चलना छै
आँधी-पानी जोर करै।

वैं की जानै दर्द फूल के
जे फूलोॅ मेॅ डोर करै।

सारस्वतोॅ सेॅ कुछ नै पूछोॅ
दुख सेॅ कपकप ठोर करै।