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जूड़ा के फूल / अनुज लुगुन
Kavita Kosh से
छोड़ दो हमारी ज़मीन पर
अपनी भाषा की खेती करना
हमारे जूड़ों में
नहीं शोभते इसके फूल...
हमारे घने
काले जूड़ों में शोभते हैं जंगल के फूल
जंगली फूलों से ही
हमारी जूड़ों का सार है...
काले बादलों के बीच
पूर्णिमा की चाँद की तरह
ये मुस्कराते हैं।