भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जैहें नै / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नद्दी किच्छा जैहें नै
गिरलोॅ-पड़लोॅ खैहें नै
खाना सॅे पानी पी दूना
रौद-बतासी रैहें नै
नद्दी किच्छा जैहें नै

शौचालय बाहर मत जो
बिना हाथ धोने मत खो
बढ़ियां जो बनना छौ नूनू
समय सॅ पहिनें इस्कूल जो।