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ज्ञान का दीपक जला दे / अजय अज्ञात
Kavita Kosh से
ज्ञान का दीपक जला दे
तू जहालत को मिटा दे
ज़िंदगी को हौसला दे
नेक रस्ते पर चला दे
कुदरती आबो हवा दे
ख़ुशनुमा मंज़र बना दे
फूल गुलशन में खिलेंगे
तू ज़रा सा मुस्कुरा दे
खूब है ये ज़िंदगानी
खूबतर इस को बना दे
मुश्किलें ही मुश्किलें हैं
मुश्किलों का हल बता दे
बेहिसो लाचार हैं जो
मत उन्हें तू यातना दे
ज़िंदगी है कशमकश में
क्या करूं कुछ मश्विरा दे
फड़फड़ाता है परिंदा
क़ैद से इस को छुड़ा दे
जा रहा हूँ दूर तुझ से
हाथ रुख़्सत को हिला दे
चाहता हूँ तुझ से मिलना
ऐ ख़ुदा अपना पता दे