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झरने की तरह / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल

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कहा था जहाँ पर
कि अकसर तुम आती हो
मिल सकती हो वहाँ
गुजरा उधर से भी पर खाली
कोई एक बूँद नहीं टपकी
वृक्ष सरसराते रहे
मातम मनाते रहे क्या करता?
कौन-सा रास्ता था
कि पहुँच पाता तुम तक?
बस खाली एक उम्मीद
शायद कभी तो नजर आओगी
शायद कभी तो धड़केगा
तुम्हारा भी दिल
कभी तो चाहोगी
मेरे साथ आना
मेरा साथ पाना
बस एक उम्मीद से
खिलंेगे नये फूल
निकलेंगे नये पत्ते
बरसेगा मेह
करेगा तरबतर तुम्हारा प्यार
मुझे सिर से पाँव तक।