भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झोपड़ी के वह लाल हैं / कैलाश झा 'किंकर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झोपड़ी के वह लाल हैं।
खूबसूरत कमाल हैं॥

बेवजह आप भी यहाँ
काटते क्यों वबाल हैं।

सोचते देश के लिए
लोग जो बेमिसाल हैं।

लाल, पीले जो चाहिए
माँगिए सब गुलाल हैं।

दीजिए तो जवाब भी
सामने जो सवाल हैं।