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ठण्ड / सुदर्शन वशिष्ठ
Kavita Kosh से
ईश्वर की तरह
अदृश्य
स्पर्ष भी नहीं
नहीं आकार प्रकार
अहसास कराती
पल-पल
फिर भी निराकार।
जुड़ कर
सट कर
रहना सिखाती
दूरियाँ मिटाती
बड़ा होकर
सिमटना सिखाती।
गरीब की लुगाई
अमीर की जमुहाई।
ठण्ड बड़ी दबंग
चलती सँग-सँग।