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डूब जाएगा ही मझधार में जाकर नैया / ईश्वर करुण

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डूब जाएगी ही मझधार में जाकर नैया
जानवर ही मैं चढ़ा हूँ अरी ओ पुरवैया।

रोज हाथों में अपने बेटे की एक लाश लिये
जूझती रहती है उस पार एक बूढ़ी मैया ।

राष्टद्रोही हूँ और न लाश का हूँ सौदागर
मुझको कह लो भले काफिर-विधर्मी-तनखैया ।

जो गिद्ध है वो जश्न मौत की मनाते है
मनाती खैर जिन्दगी की भोली गौरेया।

है कौन मौत से परे ये बख्शती है किसे
तो आओ जिन्दगी के लिए लड़के मरें हम भैया ।