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तमाशा / प्रेरणा सारवान
Kavita Kosh से
आवाज कभी शोर नहीं करती
जब देखो तब
मन के टीलों पर चढ़कर
खामोशी ही चिल्लाती है
बाहर भीतर
हर तरफ
उद्दण्ड, विक्षिप्त
युवा लड़की की तरह
द्वन्द्वों के पागलखाने से
भागते हुए
मैं दोनों को
कुछ नहीं कहती
चुपचाप देखती हूँ
अपने जीवन का
असफल तमाशा।