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तलवार का घाव / मुइसेर येनिया
Kavita Kosh से
खुद के सिवा कोई नहीं मेरे पास
एक भी दिन नहीं
इस रात के बाहर मेरे पास
बर्फ़बारी के बीच मैं नींद के आग़ोश में जा रही हूँ
इस देह के साथ जिसे कुत्तों ने
तार-तार कर दिया है
मैं इन्तज़ार कर रही हूँ ज़िन्दगी के गुज़रने का
तलवार का एक गहरा घाव है
मेरी जाँघो के बीच
मैं यहाँ आई
एक स्त्री की कोख भरने के बाद
मुझे नापसन्द थी यह दुनिया
जिसे मैंने उसकी नाभि से देखा था
खुद से बाहर कोई नहीं मेरे पास
एक दिन तक नहीं
रात से बाहर
मेरे पास ।