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ताकि / महेश चंद्र पुनेठा
Kavita Kosh से
एक मीठे अमरूद की तरह हो तुम
जिसका
पूरा का पूरा पेड़ उगाना चाहता हूँ
मैं अपने भीतर
तुम फैला लो अपनी जड़ें मेरी
एक-एक नस में
पत्तियाँ एक-एक अंग तक
चमकती रहें जिनमें संवेदना की ओस
तुम्हारी छाल का
हल्का गुलाबीपन छा जाए मेरी आँखों में
होठों में
तुम्हारे भीतर की लालिमा
तुम फूलो-फलो जब
मैं हो आऊँ
दुनिया के कोने-कोने तक
बाँट आऊँ
तुम्हारी मिठास को
ताकि
तुम्हारी तरह
मीठी हो जाए सारी दुनिया ।