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तातैं हृदै-सँभारि, हरि-राधा को किन सुजस / शृंगार-लतिका / द्विज

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सोरठा
(बुद्धिस्थिता भगवती का उपदेश)

तातैं हृदै-सँभारि, हरि-राधा को किन सुजस ।
बरनन करत बिचारि, जिनके इमि सेबक किते ॥३६॥