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तारीख़ बन जायेगी / पंछी जालौनवी
Kavita Kosh से
राहों की बेड़ियाँ
खोल के चल दिये हैं
मज़दूर
अपने जिस्म को
अपने कांधे पर रखकर
ख़ुद अपने आपसे
ये बोल के चल दिये हैं
या तो वहशत पहुँचेगी
अपने क़दमों पर चलके
गांव हमारे
या फिर बेबसी हमारी
देश की मिट्टी में मिल जायेगी
आने वाली नस्लों के लिये
तारीख़ बन जायेगी॥