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तालाब / शरद कोकास
Kavita Kosh से
ठण्डे किए जाते हैं ताजिए
विसर्जित की जाती है मूर्तियाँ
इसी तालाब में
इसी तालाब से शुरू होकर
इसी पर विराम पाता है
त्यौहार का उल्लास
इसी तालाब में
कपड़ों के साथ
धोती-पछाडती है औरतें
घर-गृहस्थी की परेशानियाँ
इसी तालाब में
हँस कर नहाती हैं
बच्चों की मस्तियाँ
जवानों की बेफ़िक्री
बुज़ुर्गों की जिजीविषा
गले तक डूबे रहते ढोर-डंगर
बगुले बुझाते प्यास
मछलियाँ लेती साँस
इसी तालाब में
इसी तालाब की मिट्टी
विवाह में बनती मांगर-माटी
वहीँ मरने के बाद
सिराए जाते
अस्थि और फूल
इसी तालाब में ढलकते हैं
गाँव के आँसू
इसी तालाब के सहारे
कटते हैं
गाँव के बचे-खुचे दिन