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तुम अपने: हम अपने / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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तुम अपने घर रहो, मुझे भी
अपने घर में रह लेने दो।

माना तुम इतने समर्थ हो
चाँद-सितरों तक हो आए;
और चाँद पर बसने को भी
तुम अपनी इच्छा कर आए।

बसो चाँद पर, मुझे मगर
अपनी धरती पर रह लेने दो।1।

तुमने छल के बल से नापी
धरती सारी, सारा अम्बर;
बन ‘बामन’ चाहते पैर अब
रखना तुम बलि के मस्तक पर।

तुम छल करो भले छलियों से
मुझ निश्च्छल को रह लेने दो।2।

धरती को तो बना दिया ही
तुमने पूरा कुरुक्षेत्र है;
अंतरिक्ष की शांति-भंग भी
करने को अब खुला नेत्र है।

तुम ‘रॉकिट’ बन उड़ो भले ही
मुझे विहग बन उड़ लेने दो।3।

तुम पृथ्वी के पुत्र और मैं
भी हूँ पुत्र इसी पृविी का;
फिर क्यों रह सकता न हमारा
रिश्ता है भाई-भाई का?

बँटवारा ही चाहो तो-
भाई-चारे का कर लेने दो।4।

24.5.85