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तुम जो आओ बहार आ जाये / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
तुम जो' आओ बहार आ जाये
हर कली पर निखार आ जाये
भानु जो आँख खोल दे अपनी
कंज कलियों को' प्यार आ जाये
तितलियाँ पर समेट लें अपने
जब भी' फूलों पे' खार आ जाये
कीच देखो उठा चलो कपड़े
रोक ले हाथ वार आ जाये
सत्य की राह यदि चलें सारे
नीतियों में सुधार आ जाये
एक पग जब बढ़ा दिया आगे
मुश्किलें फिर हज़ार आ जाये
कोई जाने से रुक न पायेगा
मौत की यदि पुकार आ जाये