भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम नहीं माने / फ़रहत एहसास
Kavita Kosh से
सोचो
फ़िर एक बार
गौर से
जब तुम पैदा हुए थे
तुम्हारी माँ
कितना फूट कर रोई थी
लेकिन
तुम नहीं माने