भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारा अक़्स उभरा जा रहा है / अनीता मौर्या

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारा अक़्स उभरा जा रहा है,
लहू आँखों से बहता जा रहा है,

मैं जितनी दूर होती जा रही हूँ,
वो उतना पास आता जा रहा है,

मुझे डोली में रुख़सत कर के देखो,
मेरा क़िरदार बदला जा रहा है,

वो गाड़ी दूर भागी जा रही पर,
कोई आँखों में ठहरा जा रहा है,

वो आया था तो मेला सज गया था,
मगर उस पार तन्हा जा रहा है ..