भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे अंधेरों को / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तूम्हारे अँधेरो को
रोशनी मिले
घर, मन
सब जलाया
मेरा हासिल तो बस
मुट्ठी भर राख

ढूँढ़ती
एक नदी
जिसे सौंप दूँ
अपना हासिल
यह मुट्ठी भर राख
और मुक्त हो जाऊँ