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तूफ़ानी जीवन सागर में / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'

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तूफ़ानी जीवन-सागर में साथ-साथ तैरें प्रिय, हम-तुम!

देखो मुक्त प्रवाह, कि इसमें
भँवरों की कैसी क्रीड़ा है!
रासमयी लहरों की बंकिम
भौंहों में कैसी व्रीड़ा है!
तुम पट पर क्यों मौन खड़ी हो, प्राणप्रिये, होकर यों गुम-सुम!

है ही क्या संसार अरे, यहाँ
जबकि गुँथी हो तुम बाँहों में,
चरणों का संगीत जगाने-
सौ चट्टान खड़ीं, राहों में!
दिखलायेगा पंथ तुम्हारे चन्द्र-भाल का शोभित कुंकुम!

जग है यह भादों की रजनी,
प्रिय, तेरे केशों-सी सुन्दर!
पथ के कुश-कंटक तो हैं ये-
मृदु रोमांच हमारे तन पर!

तुम हो मेरी साँस और मैं उससे फूटा हुआ तरन्नुम!
काल-रेत पर ऊषा, सन्ध्या-से
हम मृदु पद-चिन्ह छोड़ते!
बढ़ते जायेंगे चिर तुम में
मन के कोमल तार जोड़ते!

शेष न कोई चाह, साथ हो जब तुम-हे मेरी कल्पद्रुम!

तूफानी जीवन-सागर में
साथ-साथ तैरें प्रिय, हम-तुम!