भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थाणै में / सुरेन्द्र डी सोनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इक के रह्यो है
बीं रै कन्नैं
पग रै मूंठै सूं
धरती कुच‘र
लखोणैं खातर

इब तो
जाणैं पाछो फिरै
काळ रो
ओ चक्को
अर जा‘र ठैरै
त्रेता जुग रै आंगणैं

आ धरती
फाटै ओजूं...
रूखाळा ही
फेरूं
लूट लीनी लाज
बाग रै
फूल री आज..।