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थी खला नहीं कोई भी / रंजना वर्मा
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					थी नहीं खला कोई भी तेरी इस कमी से पहले 
बिखरा है नूर जैसे तेरी रौशनी से पहले 
मैं तड़प के मर ही जाती जो न बेकली सताती
मिला अश्क़ का समन्दर मुझे तिश्निगी से पहले 
थे हसीन ख़्वाब मेरे थीं सुकून भरी नींदें
न तड़प न करवटें थीं तेरी आशिक़ी से पहले 
हैं घने-घने अँधेरे है बढ़ा-बढ़ा कुहासा
हुई रात कितनी काली खिली चाँदनी से पहले 
मेरी आरजू भी है तू मेरी जुस्तजू भी तू है
तू खुदा कहाँ था ऐसा मेरी बन्दगी से पहले 
है जगा जो दर्द दिल में उम्मीद नयी जागी
मिलती नहीं मसर्रत दिल की खुशी से पहले 
तू यकीन कर ले मुझ पर मैं भी कर लूँ कुछ भरोसा
जरा दिल से दिल मिला ले किसी दोस्ती से पहले
	
	