भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दगाबाज दुनिया है सबै कुछु रुपइया / भारतेन्दु मिश्र
Kavita Kosh से
दगाबाज दुनिया है सबै कुछु रुपइया
तरफराति पिंजरा है काठ कै चिरइया।
कबौ लोनु रोटी है
बसि फटही धोती है
आँखिन-मा बूड़े हैं सुर्ज औ जोन्हइया।
हम करजा ढोइति है
मूडु पकरि रोइति है
जइसे सब मरिगे हैं बाप अउरु मइया।
किसमत सबु गोड़ि चुकी
लोटिया लौ बूड़ि चुकी
अब बूड़े वाली है स्वाँसा कै नइया।