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दबिश बेहतर कि आमने-सामने / लीलाधर मंडलोई

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दुनिया में कम से कम
दो चार दोस्त तो ऐसे हों
कि रास आएँ अपनी कमजोरियों में

हँसें इतना खुलकर
उनमें मक्कारी न हो
बात करें तो बस सामने
आँखें घूमें न किसी और तरफ शिकारी सी

करो यह सब भी तो उज्र नहीं
इंतजार न करो किसी पीठ घूमने का
दबिश बेहतर कि आमने-सामने हो

घूमने पर जो करोगे वार
रह जाएगा बस इतना मलाल
होते हुए विदा
न देख सका बेचारा
तुम्हारी हँसी, तुम्हारी आँखें