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दम हे घुटल किसानी के / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
मन के ताव मरल हउ भइया
सतबल सब ई पानी हे
ई गइत में हमर कहानी हे
बदरा बान्ह के नुकलइ गाती
रह-रह कपसे टोला-टाटी
कड़कड़ रउदा धिप्पल धरती
गरम हवा के दउड़े पाटी
सोंच फिकिर के
उलटल अँखिया
पेट के ई परेशानी हे
ऊपरा में दउड़े जब बादर
धरती देखवे फाटल चादर
चूल्हा के पिछआड़े बइठल
सपरल सिधमानी मन दादर
हदस पइसल हे चुरगुन में
न´ अब होत नेमानी रे
धरती धिप्पल बनलइ खपरी
जर जजात सब भुंजा फरही
हावा रहि-रहि बढ़नी झांटे
टैट बचल न´ एक्को दमड़ी
सपरल सपना माटी भेलइ
दह हे घुटल किसनी के।