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दरख्त री आंख / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
दरख्त रो फूटणो
फूटणौ है सुपना रौ
आदमी रौ फूटणौ
टूटणौ है सुपना रौ।
आ देख:
फूटण लाग री है
नीम री डाळ !
देख-कै फूटै है आंख,
तो फूटै है सुपना भी।
दरख्त कदै आंधो नी हुवै।