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दर्द दिल में संभाल कर रखा / रविकांत अनमोल

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दर्द दिल में संभाल कर रक्खा
अपनी आँखों को मैंने तर रक्खा

मैंने देखी क़रीब से दुनिया
तूने मुझको जो दर-ब-दर रक्खा

मैंने तेरे बदन की ख़ुश्बू को
अपने गीतों में ढाल कर रक्खा

लग़्ज़िश आई न उसके क़दमों में
जिसने दिल में ख़ुदा का डर रक्खा

तेरी चौखट पे इस जनम हमने
पाँव रखना न था मगर रक्खा

हमने रख्खीं सहेज कर यादें
और लोगों ने सीमो-ज़र रक्खा