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दहशत / रेणु हुसैन
Kavita Kosh से
फूल खिल रहा था
बहुत धूप में भी
फूल खिला रहा
बहुत बारिश में भी
फूल नहीं टूटा
तेज़ हवाओं से भी
एक दिन बारुद जैसी
एक गंध फैली
उसकी जड़ों में पानी जैसा
खून बंट गया
फूल शरमा गया
फूल मुरझा गया
पंखुड़ी-दर-पंखुड़ी बिखर गया