भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल की हालत बिगड़ रही है क्यूँ / बेगम रज़िया हलीम जंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल की हालत बिगड़ रही है क्यूँ
हर नफ़स मुझ को बे-कली है क्यूँ

दिल लगाता है बस सदा तेरी
बे-क़रारी ये बढ़ रही है क्यूँ

उस के कूचे में उम्र गुज़री फिर
कूचा-ए-यार अजनबी है क्यूँ

जिस्म जंजीर हो भी सकता है
रूह आज़ाद है रूकेगी क्यूँ

अब ये समझी हूँ जब बनी जाँ पर
मरकज़-ए-जाँ तेरी गली है क्यूँ