भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दीवाली का गीत / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
धरती पर दीप जले, अम्बर में तारे ।
दीवाली आई द्वारे ।।
मन्दिर में दूर आरती थमी
कुहरे की एक पर्त-सी जमी
देखना ! अन्धेरे से रोशनी न हारे ।
दीवाली आई द्वारे ।।
आँगन में दीप डोलने लगे
सोने का रंग घोलने लगे
एक नया भोर उगा साँझ के किनारे ।
दीवाली आई द्वारे ।।
कहीं जली पुलक-पुलक फुलझड़ी
बम छूटे, सर-सर चकई उड़ी
चन्द छन्द बोल गए दूधिया अँगारे ।
दीवाली आई द्वारे ।।
आओ हम बैर-भाव तोड़कर
मिल जाएँ राह-द्वेष छोड़कर
जलते हैं दीप सदा, स्नेह के सहारे ।
दीवाली आई द्वारे ।।