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दुनिया है अगर / नंदकिशोर आचार्य

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तुम हो
दुनिया में मेरी
नहीं हूँ पर
दुनिया में तुम्हारी मैं

नहीं हूँ मैं यानी
अपनी ही दुनिया में
—और वह दुनिया
फिर भी
दुनिया है मेरी

नहीं है जो
उस की
हो सकती है कैसे
कोई दुनिया

दुनिया है अगर
तो कहीं वह भी है—
कितना भी हो
न हो कर वह ।

12 जून 2009