भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूसरे शहर में / केदारनाथ सिंह
Kavita Kosh से
यही हुआ था पिछ्ली बार
यही होगा अगली बार भी
हम फिर मिलेंगे
किसी दूसरे शहर में
और ताकते रह जाएंगे
एक-दूसरे का मुँह