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दे रही सबको हवा पैग़ाम है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
दे रही सबको हवा पैग़ाम है
जिन्दगानी में नहीं आराम है
जो सताते ही रहे हैं और को
पा रहे अब उस का ही अंजाम है
सब छुड़ा कर हाथ आगे बढ़ गये
क्या पता अब दूर कितना गाम है
प्यार ही जब रूह की है खासियत
किसलिये फिर इश्क़ ये बदनाम है
हो गया राहे वफ़ा में जो फ़ना
बेवफ़ाई का उसे इल्ज़ाम है
हम खुशी को ढूंढते ही रह गये
ढल चली लो ज़िन्दगी की शाम है
दे सकूँ थोड़ा सुकूँ भी मैं अगर
जिंदगी मेरी सभी के नाम है