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देवता रूठे हुए हैं / रविशंकर पाण्डेय
Kavita Kosh से
देवता रूठे हुए हैं
प्रार्थना में
कुछ कमी थी
देवता रूठे हुए हैं!
ताप के
ताये दिनों में
अनवरत तपते रहे हैं,
आपके ही नाम की
माला लिये
जपते रहे हैंय
क्या चढ़ाते
हम चढ़ावा
फूल फल जूठे हुए हैं!
कुण्डली
बाँची किसी ने
या किसी ने
हाथ देखा,
सभी का कहना
यही था
साफ दिखती भाग्य रेखा
फलित ज्योतिष के
सभी अनुमान
क्यों झूठे हुए हैं!
हाथ में-
दिनभर रहा है
फावड़ा या फिर कुदाली,
किन्तु क्यों
मुट्ठी हमारीय
जिन्दगी भर रही खालीय
क्या हुआ जो खून सींचे
बेंत भी ठूठे हुए हैं!