द्राविड़ी प्राणायाम / सरबजीत गर्चा / सलील वाघ
सशक्त
महानदी जैसी जाँघें
मैं प्रवाह में उल्टा तैरते हुए
जा रहा हूं विरुद्ध साँप के समान
स्रोत की ओर
तुम्हारे पानी में खिंचाव है बहुत
मैं स्रोत में पहुँच रहा हूँ
गँगोत्री
गुनगुने कुण्ड में पवित्र होता हूं
सारे प्रवेशद्वारों के पास
मैं कर रहा हूँ भीड़ एकदम
चारों ही आठों ही गोपुरों से
मैं भीतर भागने की फ़िराक़ में हूँ
एकाएक ही मचती है मेरे आसपास मेरी ख़ुद ही की भगदड़
कुंभ स्वस्तिक चक्र पुष्प पद्म
कूर्म वृक्ष और रत्न
सबको स्पर्श करते
शुरू की हुई
प्रदक्षिणा पूरी कर रहा हूँ
अर्थविस्तार की लहरें
अर्थविस्तार की भाषा
अर्थविस्तार का धर्म
साँवली जाँघों के झुरमुट में
बुझ गए मेरी बुद्धि के ठूँठ
क्लान्त फेंक दिया गया हूँ
रेत जैसी मिट्टी में
तलछट त्रिभुज प्रदेश में
गाढ़ी मलाई जमी है
लहकती साँसों पर।
मूल मराठी से अनुवाद : सरबजीत गर्चा