भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

द्वैत से परे / प्रेमशंकर रघुवंशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किरणों के कण-कण में सूर्य
हवाओ के ज़र्रे-ज़र्रे में पनी

और धरती के पोर-पोर में आकाश का होना
जितना सच है

उतना ही सच है हमारे रोम-रोम में
एक- दूजे का होना

जहाँ
द्रव्य और दृश्य की तरह एकाकार हैं हम।