भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरती को माँ कहते हो तो / रेनू द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरती को माँ कहते हो तो,
सुन्दर इसे बनाओ!
सृष्टि संतुलित करने खातिर,
पर्यावरण बचाओ!

पेड़-पहाड़ अगर काटोगे,
भू-हो जाएगी बंजर!
आने वाली पीढ़ी को क्या,
दिखलाओगे यह मंजर!

हरियाली से जीवन सुंदर,
सबको यह समझाओ!
सृष्टि---

नदियाँ-झरने वृक्ष-लताएँ,
यह सब भू के आभूषण!
हरी-चुनर वसुधा पहने अब,
खूब करो वृक्षारोपण!

रंग-विरंगे फूलों से नित,
धरती को महकाओ!
सृष्टि---

जड़-चेतन में औषधियों का,
मिलता खूब खजाना है!
जंगल में मंगल रहने दो,
जीवन अगर बचाना है!

निश्छल प्रेम करो कुदरत से,
अपना फर्ज निभाओ!
सृष्टि---

बहुत हो चुका पतन धरा का,
अब तो तुम मानव जागो!
वायु भूमि जल पशु पक्षी को,
अब अपना साथी मानो!

कुदरत की सेवा है करना,
यह संकल्प उठाओ!
सृष्टि---