धर्म हार कमै जीवणा, बेकार हो सै माँ / दयाचंद मायना
धर्म हार कै जीवणा, बेकार हो सै माँ
शूरवीर के सिर के ऊपर भार हो सै माँ...टेक
मनै धर्म के इम्तिहान के म्हं पास होण दे
इस मोह-ममता के झगड़े तै, बरखास होण दे
इस पाँच तन्त के पुतले का माँ, नास होण दे
एक या ए बिधी सै, राम-मिलन की आस होण दे
फेर इसी मौत का मिलना भी, दुश्वारहो सै माँ...
पढ़ कलमा और नमाज, फेर बिन गीता रहूंगा
एक अमृत धार छोड़कै, जहर नै पीता रहूंगा
मत बाँध पाप की गाँठ, धर्म बिन रीता रहूंगा
मुसलमान बणकै के सदा जीता रहूंगा
हो फेर अन्धेरा चाँदणी, दिन चार हो सै माँ...
भला किस तरिया तै ले, मान हकीकत, तेरी बातां नै
तू ना समझी ते मैं समझा दूं मेरी भोली माता नै
कोण मेटदे हरफ जो टेक दी, कलम विधाता नै
लिखती बरिया कोण पकड़ले, उसके हाथां नै
या मौत और जिन्दगी, ईश्वर के इख्तार हो सै माँ...
कह ‘दयाचन्द’ मुसलमान तै, आज बणज्यां मैं
मक्के, मस्जिद, ईदगाह की आवाज बणज्यां मैं
चाहे बावन सूबां के ऊपर महाराज बणज्यां मैं
चाहे गवर्नर, वाईसराय, हिन्द का ताज बणज्यां मैं
पर धर्म हार कै धन खाणिए की हार हो सै माँ...