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धूप शीत छाँव सही / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
उम्र दे पड़ाव नहीं,धूप शीत छाँव सही,
दंभ मन विकार से, संत डरने लगे ।
पल एक मीत बनें,जीत यश गान घने,
दीर्घ नहीं आयु भली, जो अखरने लगे
पुण्य प्रसून हो खिले,मधुप गान से सजे,
सुषमा से छविमान, राग भरने लगे ।
यौवन अनमोल है,आरक्त से कपोल हैं,
प्रीति पथ सँवार लें,क्यों मुकरने लगे ।
कंटकों से हार नहीं,निष्ठुर कर्तार नहीं,
अंत है अनंत नहीं , द्वंद्व करने लगे
मंजु मुस्कान नवल,झील में खिला कमल,
हंस द्वै आर्द नयन,प्रीति झरने लगे ।
विभव कल्पना करो,बीज बुरे मत भरो,
प्रेम जगत सार क्यों, पीर मरने लगे ।