भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धृष्ट नायक / रसलीन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भोर उठि आए झूंठी बातन बनाए दोऊ,
हाथ सिर ल्याइ परि पाय मोहि छरिगो।
साँझ गए रसलीन यातें सब भूल काहु
कुलटा कलंकिन के जाय पग परिगो।
औरो तो परेखो कछु आवत न मोको एक,
भय अद्भुत आनि मेरे हिये भरिगो।
अब ही तो माथे को महावर न छूटी ह्वै है
एरी इन्हीं पायन को परिबो बिसरिगो॥58॥