भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न है यह दर्द आँखों का न यह पानी ही खारा है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न है यह दर्द आंखों का न यह पानी ही खारा है
कहें क्या अब हमें इन आंसुओं का ही सहारा है

है ओढ़ी गम की चादर अब न रंगों से रह रिश्ता
जरा तू देख ले दिलकश बड़ा दिल का नज़ारा है

भरे सब छेद कश्ती के बहुत तूफ़ान भी झेले
भंवर में जब फँसे देखा तो आगे ही किनारा है

पसारे अपना दामन मांगते हैं सब दुआ उस से
है जो दुनियाँ का मालिक बेसहारों का सहारा है

लकीरें पढ़ के हाथों की बड़ी तक़रीर है करता
पढ़े तकदीर क्या कोई कि जो किस्मत का मारा है

जरा सी देर जन्नत को भुला कर आ भी जा हमदम
तेरी राहों को हम ने आज पलकों से बुहारा है

न रोको अब हमें मत वास्ता दो आज दुनियाँ का
सनम ने जिंदगी के पार से हम को पुकारा है