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नदी है यह / रामकृष्ण पांडेय
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देखो देखो
नदी है यह
कितना चौड़ा है इसका पाट
सूख गई है स्रोत्स्विनी
रेत ही रेत है
दूर-दूर तक
पर, इसके हृदय में
कहीं बहता होगा शीतल जल
कल-कल, छल-छल
जब आएगा मौसम
प्रवहमान होगी नदी
स्रोतस्विनी
नदी है यह