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नभ आंगनमे पवनक रथ पर / मायानन्द मिश्र

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नभ आंगनमे पवनक रथपर
कारी कारी बादरि आयल।
देखितहि धरणीक बिषम पियास,
सजल-सजल भए गेल आकाश
बिजुरी केर कोमल कोरामे डुबइत
सुरुज किरण अलसायल।
झिहरि-झिहरि सुनि गगनक गान,
धरणि अधर पर मृदु मुसुकान
आकुल कोमल दूबरि दूभिक मनमे
नव-नव आशा उमड़ल।