भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नया बियहुआ के ऐंगना में / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
दूर-दूर रहलो पर ऐतें-जैतें रहलै कंत साल भर
नया बियहुआ के ऐंगना में नुकलो रहल बसन्त साल भर
भेल पता नै जेठ महीना कहिया ऐलै गेलै
मन उपवन में फूल फूलैलै सगरो गम-गम भेलै
छत के ऊपर पुरबा पछिया रचलक बर खरजंत साल भर
नया बियहुआ के ऐंगना मंे नुकलो रहल बसन्त साल भर
गरजल-तरजल सावन ऐलै पतझर कही परैलै
नव जोरी के मन उपवन सन वन-उपवन हरिऐलै
भाग जगल सुखतें सरिता के करने गेल जिवंत साल भर
नया बियहुआ के ऐंगना में नुकलो रहल बसन्त साल भर
माघ महीना बिन सूरज के एक रात सन बीतल
केतना चाँद सितारा टूटल तन हारल मन जीतल
रितुपति मन मंदिर में बैठल बनलो रहल महंत साल भर
नया बियहुआ के ऐंगना में नुकलो रहल बसन्त साल भर